गोरखा जन मुक्ति मोर्चा के श्री बिमल गुरुंग ने भले ही अहिंसा व शान्ति पूर्वक ढंग से आन्दोलन को चलने पर जोर दिया है पर यह बहुत मुश्किल है। घाटी में तो इसके विरोध में नेपाली - बंगाली हिंसा भी देखने को मिल रही है जो इस क्षेत्र के लिए बिल्कुल भी शुभ नहीं कही जा सकती।
मैं तो किसी भी जन आन्दोलन में मानव अधिकारों के उल्लंघन का घोर विरोधी हूँ।
दार्जिलिंग के चल रहे आन्दोलन में कितने ही पर्यटकों को कष्ट झेलने पड़े। उनके मूलभूत अधिकारों का सरेआम उल्लंघन हुआ। इस से न केवल पर्यटन आधारित दार्जिलिंग की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ जो धीरे धीरे पटरी पर आ रही थी, बल्कि पर्यटकों में भी यहाँ के बारे में एक ग़लत संकेत गया है। कम से कम इस आन्दोलन की पूर्व सूचना तो पर्यटकों को दी ही जानी चाहिए थी एवं उनको एक सप्ताह का समय दिया जाना चाहिए था।
यह कहना कि एक अलग राज्य बना दिया जाए बहुत आसान बात नहीं होगी क्योंकि इसमे अनेक पेचीदगियाँ हैं। पर सरकार को इससे सबक ले कर उत्तर पूर्व के इस क्षेत्र के विकास कि ओर ध्यान देना होगा।
सुभाष चंद्र वशिष्ठ