आसाराम बापू के आश्रम से बच्चों का गायब होना और बाद में उन बच्चों की लाशें पाए जाने से अनेक उँगलियाँ संत समाज पर उठने लगी हैं. उपर से उनके भक्तों द्वारा कानून हाथ में लेने से उठे जन आक्रोश से माहौल और गर्म हो उठा है.
इसी प्रकार हम डेरा सच्चा सौदा के प्रति सिक्खों का आक्रोश देख रहे हैं. आक्रोश ऐसा कि शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा. संत हमारे समाज को रास्ता दिखाते हैं. उनका इस प्रकार अनादर एक प्रकार से लोगो का धर्म और संतों पर से भरोसे के उठने का इशारा है. संतों को अपने आचरण में और पारदर्शिता लानी होगी. अपने आश्रमों में सुरक्षा के उचित इंतजाम करने होंगे ताकि इस तरह की घटनाएँ न हों. संतों को अपने जन व्यव्हार को भी सुधारना होगा ताकि इस प्रकार की स्थितियां न बनें.
धार्मिक श्रद्धा कब उन्माद का रूप ले ले इस बात का कोई भरोसा नहीं. वैसे भी मेरी राय में सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं को अपनी कार्य नीति बदलनी होगी. सब कुछ इश्वर ठीक करेंगे ऐसा सोच कर बैठे रहने से तो असमाजिक तत्त्व ही इस का लाभ उठाएंगे. और धीरे धीरे आम जनता का विश्वास संत समाज से उठने लगेगा और समाज पतन की और अग्रसर होगा इसमें कोई दो राय नहीं.
चेतने का यही वक्त है. अन्यथा बहुत देर हो चुकी होगी.
एक चिंतित भारतीय
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