Friday, October 12, 2012

उच्चतम न्यायालय ने हमें सूचना आयुक्त की मनमानी से मुक्ति प्रदान कर दी है.

साथियों,


हमारे मित्र श्री कृष्णराज राव द्वारा भेजे गए लेख तो आप सब की जानकारी हेतु नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है कि हमारे आरटीआई कार्यकर्ता और जानकारी चाहने वाले  इससे लाभान्वित होंगे! 

सप्रेम 
सुभाष चन्द्र वशिष्ठ 


उच्चतम न्यायालय ने हमें सूचना आयुक्त की मनमानी से मुक्ति प्रदान कर दी है.



मुंबई, 17 सितम्बर 2012: 13 सितम्बर 2012 का दिन सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं और सभी नागरिकों के लिए एक उत्सव का दिन हैक्योंकि उच्चतम न्यायालय ने हमारे रास्ते की सबसे बड़ी बाधा को दूर कर दिया हैअर्थात केंद्रीय और राज्य सरकारों की सूचना आयुक्तों के रूप में सेवानिवृत्त नौकरशाहों की नियुक्ति करनेयानी उन स्थानों में अपने स्वयं के व्यक्तियों को रखने की प्रवृत्ति कोन्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने नमित शर्मा बनाम भारतीय संघ के मुक़दमे के ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि सभी सूचना आयोगों कोएक अच्छी कानूनी पृष्ठभूमि वाले न्यायिक सदस्य के साथ व्यक्ति के साथद्वि-व्यक्ति बेंचों के रूप में कार्य करना आश्यक हैराज्य सरकारों और केंद्र सरकार के लिएनियुक्ति से कम से कम तीन माह पहले विज्ञप्ति देने के बादऔर शेष प्रक्रिया का अनुपालन करने के बादसूचना आयुक्तों के उचित चयन के लिए नियम बनाना भी अनिवार्य कर दिया गया है.


इस अत्यंत दूरगामी फैसले में, उच्चतम न्यायालय ने स्वयं के अंतर्गत अर्धन्यायिक निकायों के रूप में सूचना आयोगों को स्वामित्व में लिया है, न कि नौकरशाहों के लिए सेवानिवृत्ति गृह के रूप में. "हम मानते हैं कि यह कानून का एक निर्विवाद प्रस्ताव है कि आयोग न्यायिक और अर्धन्यायिक प्रकृति के कार्यों को करता हुआ और न्यायालय से सम्बन्ध रखने वाला एक न्यायिक प्राधिकरण' है. यह एक महत्वपूर्ण दांता है. यह उन मंत्रिमंडलीय न्यायाधिकरण के विपरीत है, जो प्रशासन की प्रणाली से अधिक प्रभावित और नियंत्रित है और प्रशासन की मशीनरी के समान कार्य करता है,” ऐसा निर्णय में कहा गया है.
Translated into Hindi by Supriya Deshpande <honyakuremedies@gmail.com>

आज सूचना प्राप्त करने वाले के लिए, सबसे बड़ा भय यह है कि सभी राज्यों में और केंद्र में अधिकांश सूचना आयुक्तों का स्वयं तक सीमित कानून है, ऐसे आदेश देते हैं जिनके कानूनी तर्क कमजोर होते हैं या फिर कोई तर्क नहीं होता. वे उन जन सूचना अधिकारियोंसे सख्त व्यवहार नहीं करते, जो लगातार जानकारी देने से मना करते हैं. सूचना आयुक्त स्पष्टत: ऐसे अतार्किक और अवैध द्वितीय-अपील आदेश जारी करते हैं जिससे सूचना प्राप्त करने वाले को किसी भी प्रकार की कोई राहत नहीं मिलती! इस प्रकार, सूचना का अधिकार अधिनियम, जो नागरिक को समय पर और सही सूचना की गारंटी देता है,असफल हो जाता है.
"इस निर्णय का एक प्रतिकूल परिणाम यह है कि सभी सूचना आयोगों ने कार्य बंद रखना होगा, जब तक कि न्यायिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो जाती. वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल की समाप्ति के बाद, कोई गैर-न्यायिक विशेषज्ञ कभी भी मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा. अतः इस फैसले से सभी सूचना आयोगों के सभी कार्यों में रूकावट की सम्भावना है, जब तक बेंच के गठन के लिए मापदंड पूरे नहीं हो जाते," सीएचआरआई के वेंकटेश नायक(nayak.venkatesh@gmail.com, 9871050555) ने टिप्पणी की. भय है कि सूचना आयोगों के कार्यों को कुछ महीनों के लिए एक पक्षघात (paralysis) हो जाएगा. "जब तक नई नियुक्तियां की जाती हैं, पीआईओ और एफएए खुशी से मामलों को स्थगित कर सकते हैं.सूचना का अधिकार अधिनियम के लिए, देश भर में अगले कई महीनों के लिए ऎसा रुख हो सकता है", वेंकटेश नायक लिखते हैं.

हालांकि, कुछ ही आरटीआई कार्यकर्ताओं ने वेंकटेश नायक की निराशा में साथ दिया है.RTIIndia.org, आरटीआई कार्यकर्ताओं की अग्रणी ऑनलाइन हब, के मुख्य सभापति सी जै करीरा (cjkarira@gmail.com, 9848203583) उत्साहित हैं. "यह बिलकुल वैसा ही आदेश है जिसके लिए देश भर में सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं ने प्रार्थना की है" करीरा भावविभोर होकर कहते हैं. "मुझे लगता है कि यह हमारे लिए शैंपेन की बोतलें खोलने और सड़कों में जश्न मनाने का समय है, क्योंकि किसी भी अस्थायी देरी के बावजूद, बुरे आदेशों के साथ आरटीआई अधिनियम को जानबूझकर तोड़मरोड़कर पेश करने वाले बाबुओं के दिन समाप्त हो गए है."


उच्चतम न्यायालय के आदेश की प्रतिलिपि देखें जहां निर्देशों को हाईलाइट किया गया है:http://tiny.cc/SC-Judgment-CIC-SIC-Appt

आदेश में खूबसूरती से तर्क दिया गया है, और यह सभी आरटीआई कार्यकर्ताओं के दिलों में अपार आनंद प्रदान करेगा.

मुख्य बिंदु :
1) यह निर्णय सूचना आयोगों के सदस्यों के रूप में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है.
2) सभी राज्यों में और केंद्र में, मुख्य सूचना आयुक्त का पद सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए आरक्षित हो जाएगा.
3) सभी बेंच द्वि-सदस्यीय- एक न्यायिक विशेषज्ञ और एक गैर- न्यायिक विशेषज्ञ होने चाहिए.
4) सरकार को नियुक्तियों की प्रक्रिया में भ्रम और मनमानेपन की स्थिति को हटाने के लिए कानून की धारा 12 और 15 में संशोधन करने की सलाह दी गयी है. वेंकटेश नायक लिखते हैं, "क़ानून में परिवर्तन की सलाह देना न्यायालय के लिए एक दुर्लभ बात है,लेकिन उन्होंने इस बार ऐसा किया है.उच्चतम न्यायालय ने कहा, "विधायिका के लिए अधिनियम की धाराओं 12(5), 12(6) और 15(5), 15(6) के प्रावधानों में संशोधन करने की परम आवश्यकता है. हम देखते हैं और आशा करते हैं कि किसी भी अस्पष्टता या अव्यवहारिकता से बचने के लिए और इसे संवैधानिक जनादेश के अनुरूप बनाने के लिए इन प्रावधानों को विधायिका द्वारा जल्द से जल्द संशोधित किया जाएगा.वर्तमान में,अस्पष्टता को, राज्य सरकारों द्वारा नौकरशाहों और उनके चहेतों की पक्षपातपूर्ण नियुक्तियां करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
5) सूचना आयुक्तों की मनमानीपूर्ण और अवैध आदेश जारी करने की प्रवृत्ति से निपटने के लिए, न्यायालय ने कहा है सभी सूचना आयुक्त उच्च न्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालय और सूचना आयुक्तों की बड़ी बेंचों की तुलना में पूर्व-निर्णयों के सिद्धांत हेतु बाध्य हैं.वेंकटेश ने कहा "अच्छी बात यह है कि यह सिद्धांत समान शक्ति वाली बेंचों द्वारा दिए गए पूर्व निर्णयों का विस्तार नहीं करता".
6) उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि केन्द्र सरकार और/या सक्षम प्राधिकारी को छह महीने की अवधि के भीतर सभी सूचना आयोगों को कानून के बुनियादी नियमों के अनुरूप और प्रभावी रूप से कार्यशील बनाने के लिए सभी अभ्यास और प्रक्रिया से संबंधित नियमों को तैयार करना करना चाहिए. "गैरकानूनी और असंवैधानिक आदेश, विभिन्न राज्यों और केन्द्र में अधिकतर आरटीआई अपीलकर्ताओं की एक समस्या है,” सी जै करीराने टिप्पणी की.
7) उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी (अर्थात अधिनियम2005 की धारा 5 के अंतर्गत नामित किए जाने वाले वरिष्ठ अधिकारी) मुख्यतः कानून में एक डिग्री रखने वाले या कानून के क्षेत्र में पर्याप्त ज्ञान और अनुभव रखने वाले व्यक्ति होने चाहिए. "इस बात का निहितार्थ यह है कि प्रथम अपील के स्तर पर मनमाने ढंग से फैसले के दिन भी जल्द ही खत्म हो जायेंगे" कार्यकर्ता जीआर वोरा (grvora1@gmail.com,9869195785) का ऐसा मानना है.
8) उच्चतम न्यायालय ने सभी सूचना आयोगों को अब से प्रत्येक दो सदस्यों की बेंच में कार्य करने का निर्देश दिया है. उनमें से एक न्यायिक सदस्य होना चाहिए, जबकि दूसरा एक' विशेषज्ञ सदस्य' होना चाहिए. न्यायिक सदस्य कानून में डिग्री रखने वाला, न्यायिक तौर पर प्रशिक्षित मस्तिष्क और न्यायिक कार्यों को करने के लिए अनुभव युक्त - वह व्यक्ति जो विज्ञापन की तिथि तक कम से कम बीस साल की अवधि के लिए कानून की प्रैक्टिस किया हुआ होना चाहिए. ऐसे वकीलों को सामाजिक कार्य का भी अनुभव होना चाहिए. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को इस पद हेतु वरीयता दी जायेगी.
9) केंद्र या राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त केवल वह व्यक्ति होगा जो या तो उच्च न्यायालय या भारत के उच्चतम न्यायालय का एक न्यायाधीश है या रह चुका है.
इन पदों में से किसी के लिए भी न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश और संबंधित राज्यों के उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की परामर्श पर की जायेगी,जो भी मामले में संभव हो.
10) दोनों स्तरों पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र के मामले में डीओपीटी और एक राज्य के मामले में संबंधित मंत्रालय द्वारा पैनल में शामिल व्यक्तियों के बीच से किया जाना चाहिए. पैनल को विज्ञापन से पूर्व और एक तर्कसंगत आधार पर तैयार किया जाता है जैसा कि पहले दर्ज में किया गया है.
11) उच्चतम न्यायालय ने अनिवार्य कर दिया है कि नियुक्ति के लिए नाम प्रस्तावित करने की एक निष्पक्ष और पारदर्शी विधि अपनाई जानी चाहिए. चयन प्रक्रिया पद रिक्त होने से कम से कम तीन महीने पहले शुरू की जानी चाहिए.

आधार रेखा: आरटीआई कार्यकर्ताओं और जानकारी चाहने वालों के लिए एक अधिक दूरगामी और सकारात्मक विकास की कल्पना करना मुश्किल है!

कृष्णराज राव
9821588114

SC issues Notice to Centre on RTE Act

SC issues notice on Right to Education Act

The Supreme Court issued a notice to the Central Government on a Right to Education petition seeking exemption for unaided educational institutions

New Delhi, Oct 8: The Supreme Court Monday issued notice to the Central Government on a petition seeking exemption for unaided educational institutions from earmarking 25 percent seats for students from the weaker sections of the society.

Unaided minority educational institutions are exempted from doing so under the Right to Education Act, 2009, which calls for reserving 25 percent seats for socially and economically backward sections of the society.

An apex court bench of Justice K.S. Radhakrishnan and Justice Dipak Misra issued the notice after senior counsel Mukul Rohtagi contended that Article 15(5) was ultra vires of the basic structure of the constitution as it discriminated between two similarly placed category of educational institutions on the basis of their minority and non-minority status.
  
Seeking that the matter on the constitutional vires of the Article 15(5) be examined by the atleast five judges constitution bench, Mr. Rohtagi said that the constitution envisages equal status for minority and majority.

It would be against the scheme of the constitution to put minority on a higher pedestal then the majority community. Mr. Rohtagi was assisted by counsel Govind Goel.

The court was told that the Article 145(3) of the constitution provides that a bench of atleast five judges could only hear a case involving the substantial question of law and the interpretation of the constitutional provisions or for hearing any presidential reference.

Read more on...... I Government.

Friday, October 5, 2012

State Bank of India to transform 2500 ATMs as Talking ATMs

Dear Colleagues,

Wonderful news for all our blind brethern. State Bank of India - the largest public sector bank in India with established reach in rural India will transform over 2500 Bank ATMs to Voice guided ATMs (Talking ATMs) that will benefit the visually impaired users. Earlier Union Bank of India has launched its talking ATMs.

Here is the news report from Biztech2.com


Supporting RBI’s objective of providing financial accessibility to every citizen in India irrespective of his or her disability, NCR Corporation, the ATM service provider, will transform over 2,500 State Bank of India (SBI) ATMs to Voice-Guided ATMs -- which not only allows access to visually impaired people but also people with physical disabilities through ramps for wheel chair access. SBIs first real ATM for the visually impaired was showcased at Antarchakshu, a sensitisation workshop, organised by Xavier's Research Centre for the Visually Challenged (XRCVC) at Jawaharlal Nehru University in Delhi.

NCR's Talking ATMs are incorporated with unique software and hardware features which ensure that a person with a disability can operate the machine on his own, while maintaining the safety of the transaction. These ATM machines are designed as per Access for All (AFA) standards and comprises of accessible key pads, voice-guidance technology, Braille stickers and multi-lingual capability. Apart from reading aloud screen messages, the machine also provides complete orientation making it easy for the customer to use the machine. An important security feature of this ATM is that it provides the person an option to blank out the screen as a safety mechanism to avoid shoulder surfing by any by-stander trying to access customer data during the transaction.

Nagesh Nayak, Professional Services Practice Manager, NCR said, “We are proud to partner with SBI which is India’s largest banking and financial services company to upgrade their ATMs for the disabled. As a concerned corporate, NCR is constantly reinventing innovation for the Indian market place and this specialised ATM is a clear reflection of it. Indian banks and financial institutions are quickly realising the need to adopt self-service technologies to include the millions of differently-abled people into the financial stream and NCR is committed to helping these institutions by providing technologies that are conceptualised, created, and manufactured in India.”

The NCR Talking ATM uses a text-to-speech engine which allows voicing-out the text on the screen in multiple languages for consumer convenience. Instead to issuing Special Cards for the customers with disabilities since it can become difficult to maintain track of whether the correct card has been issued, SBI has chosen to make its existing ATM network, AFA compliant by simply customising their existing ATM software stack and upgrading the hardware configuration of its ATM fleet.

India has one of the largest visually impaired populations in the world and hence the Reserve Bank of India (RBI) through its circulars in 2008 and 2009 stated that all banking services including ATM cards need to be offered to customers with disabilities without any discrimination.

At the Antarchasku event, Dr. Sam Taraporevala, Director of XRCVC said, “For the XRCVC it is a very proud moment to witness the roll out of a large number of SBI ATMs. Antarchakshu at JNU New Delhi, has the privilege of hosting one such ATM. The event will go a long way at creating the necessary awareness and sensitisation so necessary to promote financial, educational and employment opportunities.”

Wednesday, September 5, 2012

Aadhaar to put aam aadmi (common man) on driver's seat on Digital Highway

Dear Friends,

Mr. AP Singh, DDG, UDAI in his write up " A road less travelled" published on I-Government pitches for Aadhaar as an enabling number to empower common man in India.

He talks of soft infrastructure required to enable the common man with three ingredients. They are - a mobile phone, an electronic bank account and a unique identity number. The mobile phone would connect the residents with the world. The bank account number would enable them to pay electronically for goods and services. The Unique Identity (UID) or Aadhaar will make it possible for residents to identify themselves, in person or online, definitively.

He calls them taking shape and not mere fantasies. Here is the write up which is not reproduced here in full to respect the copyright laws.






Friday, August 31, 2012

Death toll 228 at Asha Kiran since 2005, unabated

Dear Colleagues,

Those of you who work with person with multiple disabilities have seen them living ordinary life if given proper medication for epilepsy and care. However, there is utter chaos at Asha Kiran centre where no one want to take the blame for the deaths which are happening in the Govt. run institution. The centre says it is the severe mental retardation and epileptic fits that is leading to deaths while the court appointed committee and any person involved or with experience in caring for a person with multiple disabilities would say that it is unhygienic conditions, lack of medical facilities and mismanagement at the Asha Kiran which is resulting in avoidable deaths. Human life doesn't seem to have a value here.

I wanted to share a personal experience of one and half year back. One day on my way to work, I suddenly saw, a person with mental disability roaming on the ring road and then sitting under a flyover. I really got worried about his life and always thought some day some vehicle might strike him down and I thought of admitting him to the state run centres where he will be cared. Sooner, I realised the pathetic condition of the Centres that we are discussing here, I decided not to even think that way. I consulted several of my friends who expressed that this person may live a better, safe and longer life under a flyover than a State run Centre and that I should stop thinking of making efforts to have him shifted to a "safer" place like Asha Kiran.

Today after more than one and half year, when I continue to see him every day at the same place while on way to work, I feel how mistaken I was. He is at least happy & safe here and leading his life though with help from passer byes. I am sure if I had decided otherwise, I wouldn't see him alive!

Here is the news from Hindustan Times of 31st Aug 2012 giving you the update:

At Asha Kiran, 228 inmates have died since 2005


The Delhi government has admitted that 228 deaths have taken place at Asha Kiran, the Capital’s lone home for mentally challenged children and adults, since 2005. In an affidavit filed recently before the Delhi High Court hearing a PIL complaining of lack of medical care and shockingly  unhygienic conditions at the home in Rohini, the Delhi government said 59 inmates died in 2005-06, 28 in 2006-07, 34 in 2007-08, 37 in 2008-09, 46 in 2009-10, 11 in 2010-11 and 13 in 2011-July 2012.

During a hearing on August 8, the court had slammed the government for the inhuman manner in which the inmates were kept at the home and termed it the "worst kind of human rights violation". The court was perusing a report submitted by a court-appointed committee which inspected the premises of the welfare home.

Expressing shock at the revelation of 228 deaths, human rights activist and a member of the court-appointed committee Colin Gonsalves said: "This figure is high but the government feels it is low. They thought that by stating it on an affidavit it would save them before the court. The National Commission for Protection of Child Rights has repeatedly said deaths were taking place at the home due to negligence."

A bench of acting chief justice AK Sikri and justice RS Endlaw is to take a stand on the issue on Friday. The government denied the deaths were due to negligence and mismanagement. "Biological factors play a major role in high mortality rates among the mentally-challenged persons. A large number of inmates at Asha Kiran fall in the categories of severe and profound mental retardation with multiple disabilities and suffering from epileptic fits. Studies show that such types of individual keep very shortened life expectancy," the government said.

DP Bharal, deputy director with the department of social welfare, said in an affidavit: "From 59 deaths in 2005-2006, the same has come down to 13 in 2011-12. None of the deaths occurred due to negligence. The inmates who died were extreme cases of mental retardation or having chronic medical ailments."